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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?

अथवा
"गोदान उपन्यास आज भी प्रासंगिक है।' उक्ति के पक्ष में विवेचना कीजिए।
अथवा
"गोदान उपन्यास आज भी प्रासंगिक हैं।' इस सन्दर्भ में आपका क्या अभिमत है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"गोदान तक आते-आते प्रेमचन्द आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को भी पीछे छोड़ चुके थे।' पक्ष या विपक्ष में प्रमाण सहित अपना मत व्यक्त कीजिए।

उत्तर -

आलोचकों का एक वर्ग प्रेमचन्द को आदर्शवादी मानता है तो दूसरा उन्हें यथार्थवादी पर प्रेमचन्द अपने को आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहते हैं। उनकी मान्यता है- 'वही उपन्यास उच्चकोटि के समझे जाते हैं, जहाँ यथार्थ और आदर्श का समन्वय हो गया हो उसे आप आदर्शोन्मुख यथार्थवाद कह सकते हैं। आदर्श को सजीव बनाने के लिए यथार्थ का उपयोग होना चाहिए अच्छे उपन्यास की यही विशेषता है।

वे यह स्वीकार करते हैं कि उपन्यास मानव-जीवन का चित्र मात्र है। साथ ही वह मानव जीवन को दिशा देने वाला होता है वे आदर्श के महत्व को स्वीकार करते हैं, पर साथ ही यह भी स्वीकार करते हैं कि उसमें यथार्थ का ऐसा समन्वय होना चाहिए कि वह सत्य से टूटा हुआ न जान पड़े। निर्दोष चरित्र तो देवता हो जायेगा और उसे समझ ही न सकेगे एसे चरित्र का हमारे ऊपर कोई घुमाव नहीं पड़ सकता।

इसी कारण प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में ऐसे आदर्शवाद की स्थापना की है, जिसका आधार यथार्थवाद है। उनका यथार्थवाद के बारे में मत था - 'कला दिखती तो यथार्थ है पर यथार्थ ही तो नहीं।

उसकी खूबी यही है कि वह यथार्थ न होते हुए भी यथार्थ मालूम हो। उसका मापदण्ड भी जीवन के मापदण्ड से अलग है। कला का रहस्य भ्रान्ति है, पर वह भ्रान्ति जिस पर यथार्थ का आवरण पड़ा हो।

गोदान में यथार्थ का स्वरूप - 'गोदान' में उन्होंने तत्कालीन सामाजिक पारिवारिक, राजनीतिक, जीवन का कच्चा चिट्ठा उभारा है, जिसमें ग्रामीण जीवन और संस्कृति के यथार्थ चित्र हैं। होरी धनियाँ गोबर झुनिया तथा परेसुरी दातादीन झींगुरी सिंह आदि के माध्यम से ग्रामीण अंचल का यथार्थ चित्र है। कर्ज पंचायत, दण्ड आर्थिक विपुलता नैतिक-सम्बन्ध आदि सभी क्रिया- व्यापार यथार्थ के प्रत्यक्ष रूप ही है। रायसाहब को तत्कालीन जमीदारों के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में उभारा गया है, मालती आधुनिक जीवन की शिक्षित महिला के रूप लेकर आती है।

यथार्थ चित्रण की विशेषता ही यह है कि वे पात्र हमारे आस-पास के जीवन में उठाये गये हों और उनका व्यक्तित्व कृतित्व, दुःख, सुख आशा-आकांक्षा सब कुछ वैसा ही है जैसा सामान्य व्यक्ति का होता है प्रेमचन्द के पात्र इस दृष्टि से एक वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। होरी जहाँ साधारण विपुल धर्म भीरू किसान के प्रतिनिधि हैं वहाँ पारिवारिक गृहकलह का प्रतिनिधित्व होरी और शोभा करते हैं। मेहता बुद्धजीवी वर्ग का प्रतिनिधि है इसी प्रकार शेष पात्र भी हैं जो उस वर्ग विशेष की सभी विशिष्टताओं को अपने में समाहित किये हुए हैं।

गोदान का आदर्श - साथ ही गोदान के पात्रों के जीवन भाव की सृष्टि भी होती है। होरी दण्ड देता है आदर्श भाई का रूप प्रस्तुत करता है। झुनिया को अपनाकर होरी-धनिया दोनों एक श्रेष्ठ आदर्श को प्रतिस्थापित करते हैं। डॉ. मेहता का चरित्र तो आत्मसंयम अभियान शून्यता निर्भयता निशंक अभिव्यक्ति, परोपकार नारी-सम्मान आदि आदर्शों से युक्त है। मालती के चरित्र का उत्तरार्द्ध भी आदर्श सेवा भावी आत्मसंयमी रमणी का चित्रण बन गया साथ-साथ बीच-बीच में की स्थलों पर आदर्श के रूप उभरें हैं। शिकाल पर मेहता मालती का व्यवहार और वनवासी युवती की सेवा भावना। झुनिया के पुत्र की बीमारी में मेहता मालती की सेवा भावना आदि।

गोदान में आदर्श प्रधान या यथार्थ इन संकेतों से स्पष्ट है कि गोदान में यथार्थ निःसन्देह अपने यथार्थ रूप में ही उभरकर सामने आया है, वही आदर्श का रूप भी कम उज्जवल नहीं है। वस्तुतः 'गोदान' उपन्यास के पात्रों का चित्रांकन करते समय उसकी कथावस्तु की संयोजता करते समय 'यथार्थ दृष्टि' का प्रमुख हाथ रहा है और उसमें यथासम्भव आदर्श का पुट भी दिया गया है होरी का कर्ज में पिसे रहकर जीवन में गाय खरीदने की अभिलाषा, घोर कष्ट में उसकी मृत्यु सभी सम्भव और वास्तविक घटनायें है। ग्रामीण जीवन के सारे चक्र भी यथार्थ हैं। पर बीच-बीच में आदर्शवाद का समावेश करके प्रेमचन्द ने उसे आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का ही रूप दे दिया है। डॉ. राजपाल शर्मा (गोदान पुर्नमूल्यांकन) का भी यही मत है - 'संक्षेप में कहा जा सकता है कि गोदान में यथार्थ और आदर्श का गंगा जमुनी सम्मिश्रण है। उसके मालती, मेहता, होरी, गोविन्दी आदि पात्रों के चरित्रांकन में उपन्यासकार का दृष्टिकोण मूल्यतया आदर्शोन्मुखी ही रहा है, किन्तु धनिया, गोबर तथा ग्रामीण महाजनों आदि के चित्रांकन वह उतना ही अधिक यथार्थपरक है।

प्रेमचन्द के आदर्श एवं यथार्थ तथा आदर्शोन्मुख यथार्थवाद सम्बन्धी विचारों के सम्बन्ध में हिन्दी के अनेक आलोचकों ने पक्ष एवं विपक्ष में अपना विचार व्यक्त किया है। कुछ आलोचक प्रेमचन्द को आदर्शवादी मानते हैं, कुछ यथार्थवादी, कुछ उनके आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को नकारना चाहते हैं।

नन्ददुलारे बाजपेयी के अनुसार, “कोई कलाकार या तो आदर्शवादी हो सकता है या यथार्थवादी, ये दोनों परस्पर-विरोधी विचारधाराएँ एवं कला शैलियाँ हैं। इनका मिश्रण किसी एक रचना में संभव नहीं है।

डॉ. नगेन्द्र के अनुसार आदर्शवाद और यथार्थवाद में मूल विरोध है। पहले का आधार भावगत दृष्टिकोण है और दूसरे के लिए वस्तुगत दृष्टिकोण अनिवार्य है।

उपसंहार - प्रेमचन्द का चिन्तन आदर्शोन्मुख यथार्थवाद था यह उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया है, और गोदान की इस संक्षिप्त समीक्षा से भी यह तथ्य स्पष्ट होता हैं क्योंकि प्रेमचन्द यह भी संकेत देते हैं कि 'यथार्थवाद का यह आशय नहीं है कि हम अपनी दृष्टि को अन्धकार की ओर केन्द्रित करें। 'इस कथन का आशय डॉ. राजपाल शर्मा के इस कथन से और अधिक स्पष्ट हो सकेगा कि अन्धकार केन्द्रित दृष्टि से वे क्या चाहते थे - मुंशी प्रेमचन्द के आदर्शवाद और यथार्थवाद सम्बन्धी विचारों से स्पष्ट होता है कि वे अपने उपन्यासों की प्रभाव क्षमता बढ़ाने के लिए घटनाओं के संयोजन पात्रों के संवाद उसके चरित्रांकन और भाषा-शैली में यथार्थता का पुट रखने या कम से कम यथार्थता की भ्रान्ति उत्पन्न करने के पक्ष में थे। किन्तु साहित्य को मूलतः एक समाजोपयोगी कला मानने के कारण उसकी आस्था घटनाओं और पात्रों के चरित्र-चित्रण में ऐसा पुट देने की ओर भी थी जिसका पाठकों पर स्वस्थ्य प्रभाव पड़े, उससे उनके आसुरी भावों के स्थान पर देवोचित भाव-गुण जागृत अभिवृद्धि हो सके।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

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